Menu
blogid : 538 postid : 978277

क्या टूट पाएगा संसद का गतिरोध?

"Ek Kona"
"Ek Kona"
  • 36 Posts
  • 20 Comments

parlia

मानसून सत्र का हर दिन तेजी से बीत रहा है और दूसरे हफ्ते में भी सरकार व विपक्ष के बीच गतिरोध सुलझने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं, और जिस तरह से आज सरकार द्वारा बुलाई गयी सर्वदलीय बैठक भी बेनतीजा रही उससे गतिरोध सुलझने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। आलम ये है कि 20 जुलाई से शुरू हुए मानसून सत्र में अभी तक किसी बिल पर चर्चा नहीं हुई है। संसद नहीं चलने से किसी का सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है तो वो है जनता का जिसकी गाढ़ी कमाई संसद ना चल पाने की वजह से बर्बाद हो रही है, क्योंकि संसद की हर मिनट की कार्यवाही पर लगभग 2.5 लाख रुपये का खर्च होता है और इन सबके  बीच सवाल उठता है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

अगर शुरूआत से नजर डाली जाए तो सत्र के पहले ही दिन यह स्पष्ट हो गया था कि सरकार और विपक्ष के बीच सुषमा, वसुंधरा और शिवराज से जुडे़ विवादों को लेकर टकराव होगा क्योंकि कांग्रेस ने जो रणनीति बनाई दी उससे साफ था कि आरोपों से घिरे ये भाजपाई नेता जब तक इस्तीफा नहीं देगें तो वो संसद नहीं चलने देंगे। वहीं दूसरी तरफ सरकार ने भी तय कर लिया कि वो किसी भी मांग को स्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन इस रस्साकशी में संसद का कीमती समय तेजी से नष्ट हो रहा है और जिसकी भरपाई होना लगभग नामुमकिन होगा।

भाजपा की रणनीति अपनाती कांग्रेस

यहां कांग्रेस भाजपा की उसी रणनीति पर कार्य कर रही है जो कभी उसने (भाजपा) विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस के खिलाफ अपनाई थी जिस कारण तब संसद का एक पूरा सत्र बर्बाद हो गया था और आखिर में कांग्रेस के मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा था। लेकिन यूपीए के समय की स्थिति अलग थी तब उस समय ए. राजा, अश्वनी कुमार और पवन बंसल के त्यागपत्र की मांग पर संसद को बाधित किया, लेकिन यह स्थिति तब आई थी जब ये तीनों मंत्री गड़बड़ी के गंभीर आरोपों से घिरे भी थे और उनके खिलाफ जांच एजेंसी या अदालतों ने प्रतिकूल टिप्पणियां भी की थीं। और मौजूदा समय में कांग्रेस इस्तीफों के लिए उन्हीं बीजेपी के तर्कों का ही सहारा ले रही है जिनमें काफी अंतर है और यही से शुरू हो जाती है बदले की राजनीति। सवाल यह है कि क्या अलग हालात में की गई अतीत की गलती को मिसाल की तरह पेश करना उचित है? क्या कांग्रेस भाजपा से बदला लेना चाहती है?

गतिरोध टूटेगा कैसे?

अब सवाल उठता है कि गतिरोध टूटे तो टूटे कैसे क्योंकि किसी ना किसी जिम्मेदार राजनैतिक पार्टी को इस गतिरोध को तोड़ने का हल ढूंढना होगा वरना सिलसिला लंबा खिंचता जाएगा और नुकसान बढ़ता जाएगा। और जिन विकास के मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार आगे बढ़ना चाह रही है उन्हें तो झटका लगेगा ही साथ कांग्रेस को थोड़ा रणनीतिक लाभ हो सकता है क्योंकि वह जनता में यह संदेश देने की कोशिश करेगी की सरकार कुछ काम नहीं करना चाहती है जिससे संसद में कोई विधेयक पास होना तो दूर उस पर चर्चा तक नहीं हो रही है। क्योंकि सरकार के सामने भूमि अधिग्रहण के अलावा  वस्तु एंव सेवा कर (जीएसटी) , रीयल एस्टेट विधेयक और श्रम सुधार से जुड़े महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने की बड़ी चुनौती है।

ऐसे में सरकार को ऐसी रणनीति बनानी होगी, जिससे संसद का कामकाज सुचारू रूप से चल सके। सरकार को विपक्षी दलों की फूट के बीच अपना रास्ता बनाना पड़ेगा। क्योंकि जिस रणनीति पर कांग्रेस कार्य कर रही है उससे साफ है कि कांग्रेस को भी लग रहा है कि उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है और पाने के लिए बहुत कुछ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh