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भारतीय मानक ब्यूरो (आईएस-1893 (भाग-1): 2002) ने अनेक एजेंसियों से प्राप्त विभिन्न वैज्ञानिक जानकारियों के आधार पर देश को चार भूकंपीय क्षेत्रों या जोन यानी जोन-2, 3, 4, और 5 में बांटा है। इनमें से जोन 5 भूकंपीय दृष्टि से सबसे ज्यादा सक्रिय क्षेत्र है। इसके दायरे में सबसे अधिक खतरे वाला क्षेत्र आता है जिसमें 9 या उससे ज्यादा तीव्रता के भूकंप आते हैं। मोटे तौर पर जोन-5 में पूरा पूर्वोत्तर भारत, जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड गुजरात में कच्छ का रन, उत्तर बिहार का कुछ हिस्सा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह शामिल है।
जोन-4 अधिक तबाही के खतरे वाला क्षेत्र कहा जाता है। आईएस कोड, जोन 4 के लिए 0.24 जोन फैक्टर निर्धारित करता है। जोन-4 में जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के बाकी हिस्से, दिल्ली, सिक्किम, उत्तर प्रदेश के उत्तरी भाग, सिंधु-गंगा थाला, बिहार और पश्चिम बंगाल, गुजरात के कुछ हिस्से और पश्चिमी तट के समीप महाराष्ट्र का कुछ हिस्सा और राजस्थान शामिल है। दिल्ली में भूकंप की आशंका वाले इलाकों में यमुना तट के करीबी इलाके, पूर्वी दिल्ली, शाहदरा, मयूर विहार, लक्ष्मी नगर और गुड़गांव, रेवाड़ी तथा नोएडा के नजदीकी क्षेत्र शामिल हैं।
जिस तरह से दिल्ली में हर साल आबादी बढ रही है और अनाधुंध निर्माण कार्य हो रहे हैं उससे ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली शायद बारूद के ढेर पर बैठी है जो बडे भूकम्प के झटके सहने के लिए शायद तैयार नहीं हैं। 25 अप्रैल की दोपहर आए भूकंप का केंद्र भारत से सैक़डों किलोमीटर दूर नेपाल में था तब भी दिल्ली में जबरदस्त झटके महसूस किये गये जो तीव्रता नेपाल में सात के लगभग थी वह दिल्ली में 5 की रही होगी अगर ऩेपाल की तरह झटके दिल्ली में आये तो शायद इतना नुकसान होता कि जिसका अनुमान लगाना भी मुश्किल होता। कारण साफ है कि दिल्ली में नियम कायदों को ताक पर रखकर बहुमंजिला इमारतें बनने लगीं जिससे पूरा दिल्ली –एनसीआर भूकंप के लिहाज से बहुत खतरनाक हो गया है।
आज दिल्ली का कोई भी ऐसा कोना नहीं (पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी, दक्षिणी) है जहा सरकार की नाक के नीचे धडल्ले से अवैध निर्माण जारी हैं जिन गलियों में कभी एक मंजिला इमारत होती थी आज वहां बिल्डरों और लोकल प्रशासन के गठजोड़ के कारण मकानों ने कई मंजिला फ्लैटों का आकार ले लिया है, क्योंकि दिल्ली में हर साल लाखों लोग रोजगार के लिए आते हैं और हर किसी का सपना होता है अपना घर। और इसी घर के सपने को इन गलियों में फ्लैटों के जरिये लोकल बिल्डर पूरा करते हैं।
इन फ्लैटों में ना किसी सुरक्षा की गारंटी होती है और ना ही पार्किंग जिस वजह से दो परेशानियां हमेशा बनी रहती हैं जिसे इन फ्लैटों में रहने वाले लोग भी शायद नजरदंजाज करते हैं एक है पार्किंग जिसकी सुविधा नहीं होने के कारण लोग अवैध रूप से गाडियों को मेन रोड पर पार्क करना शुरू कर देते हैं जिस कारण आये दिन जाम की परेशानी से आमजन को परेशान होना पडता है, और दूसरी सबसे बडी परेशानी है भूकम्प या आपदा (आगजनी की घटना भी शामिल) के समय, क्योंकि इन गलियों में फ्लैट आमने सामने ऐसे बने हैं अगर आप फ्लैट की झतों से नीचे झांकेगें तो आपको गली की रोड भी शायद नजर न आये क्योंकि दोनों ओर से बिल्डरों ने बडी चालाकी से दोनों ओर से बालकनी को गली (रोड) के उपर बना दिया है और ऐसी स्थित में अगर कभी कोई बडी आपदा हो जाती है तो शायद रैस्क्यू भी ना हो पाये। क्योंकि रैस्क्यू के लिए जगह ही नहीं हैं।
यह हालात दिल्ली में केवल एक क्षेत्र में नहीं बल्कि समूची दिल्ली इन्हीं हालातों से जूझ रही है, जिसके लिए सीधे-सीधे प्रशासन और सरकार जिम्मेदार है। क्योंकि चाहे दिल्ली नगर निगम हो या स्थानीय पुलिस दोनों बिल्डरों को ऐसा अवैध कार्य करने का संरक्षण देते हैं जिसके लिए उन्हे मोटी रकम पहले ही पहुंच जाती है। शायद वो नहीं जानते हैं या जानते हुए भी अनजान हैं कि त्रासदी के समय इसका खामियाजा आमजन के साथ-साथ उन्हें भी भोगना पड़ सकता है।
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