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भारतीय ओलंपिक संघ के महासचिव राजीव मेहता की करतूत से दुनियाभर में भारत की छवि को धक्का लगा है। लेकिन मेहता के दामन पर पहले भी दाग लगे हैं। मेहता पर वर्ष 2002 में उत्तराखंड में खेल के लिए मिली लाखों की रकम के गबन का आरोप है। ‘मैनेजमेंट’ में माहिर मेहता का कई खेल संघों पर कब्जा रहा है। कई खेल संघों की कमान परिजनों को थमा रखी थी। भारतीय ओलंपिक संघ के महासचिव पद पर ताजपोशी भी विवादों में रही है। हल्द्वानी निवासी राजीव मेहता राज्य गठन के बाद प्रदेश के खेल फलक पर तेजी से उभरे। बताते चलें कि पैसे और नेताओं को साधने के हुनर की बदौलत मेहता जल्द ही उत्तराखंड के अधिकतर खेल संघों पर अपना दबदबा बना लिया। फुटबाल, हॉकी, खो-खो की स्टेट फेडरेशन में पदाधिकारी बन गये। कुछ समय बाद उत्तराखंड ओलंपिक संघ का अध्यक्ष भी बन गये। इसके बाद मेहता ने अपने कदम राष्ट्रीय स्तर तक पसार लिए। इस बीच उसने अपनी पत्नी को भी उत्तराखंड स्वीमिंग और वूमेन क्रिकेट एसोसिएशन में पदाधिकारी बनवा दिया। वर्ष 2002 में हुए पहले उत्तराखंड स्टेट गेम्स में राजीव पर घपले का आरोप है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से खुलासा हुआ कि राज्य सरकार ने आयोजन के लिए उत्तराखंड ओलंपिक संघ को 15 लाख रुपये दिए थे। इसमें से 12 लाख रुपये मेहता ने अपने और पत्नी दिप्ती मेहता के खातों में ट्रांसफर करा दिए। इसके बाद स्टेट ऑडिट ने 16 पेज की रिपोर्ट तैयार की, जिसकी अब तक जांच चल रही है और अजय प्रद्योत इसकी जांच कर रहे हैं। राजीव मेहता के साथ ही उत्तराखंड के खेल मंत्री दिनेश अग्रवाल और सचिव अजय प्रद्योत भी इस समय ग्लास्को में हैं। खास बात यह वही अजय प्रद्योत हैं जो मेहता की 12 लाख रुपये की गबन की जांच कर रहे हैं। दूसरी ओर मामले के 16 साल बीत जाने पर भी जांच रिपोर्ट नहीं आने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेहता की पहुंच कितनी ऊंची है। वर्ष 2002 में स्टेट गेम्स के लिए राज्य सरकार द्वारा दिए गए 12 लाख रुपये के गबन के मामले का दाग राज्य में ऐसा लगा कि आज तक यहां राज्य खेल नहीं हो पाए।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार भी पाक साफ निकल जायेंगे राजीव मेहता?
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