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उत्तराखंड अलग राज्य तो बना, लेकिन राज्य बनने के बाद राज्य के मूल निवासियों का भला हुआ हो या ना हुआ हो लेकिन यहां हर तरह के माफियाओं का राज दिन प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा है और वे कानून से ऊपर चल रहे हैं। उत्तराखंड की अमूल्य निधियों की जबर्दस्त तस्करी कर इसे देश विदेश पहुचांया जा रहा है। प्राकृतिक संपदा का मनमाफिक दोहन हो रहा है। ये सब उत्तराखंड के नेताओं व नौकरशाहों की मिलीभगत का परिणाम है। इसी के परिणाम स्वरुप राजनीति में भी अपराधीकरण बढ रहा है जहां अब विचारधारा का भी कोई अर्थ नहीं रह गया, जो आज भाजपा में है, वह कल कांग्रेस या अन्य दल का नेता बन रहा है। पंचायत चुनाव होते ही जिला व क्षेत्र पंचायत प्रमुख बनने के लिए बोलियां लग रही हैं, और इस मंडी में हर एक का रेट अलग-2 प्रकार का है और जो सदस्य आपको कुछ दिन पहले तक वोट मांगते नजर आ रहे थे वो आजकल गायब हो गये हैं शायद जब तक जिला व क्षेत्र पंचायत प्रमुख के चुनाव हो रहे हैं तब तक वो दिखे भी नहीं. सवाल यह है कि ईससे क्या क्षेत्र, जिले, पंचायत का क्या भला होगा कभी, क्योंकि ये चुनाव राजनीति की एक सीढी है जो आगे चलकर विधानसभा और संसद तक पहूचती है.और अगर शुरुआत ही खरीद फऱोख्त और से हो रही है तो राजनीति में अपराधीकरण रुकेगा कैसे ?
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