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उत्तराखंड में हाल में सपन्न हुए पंचायत चुनावों के दौरान गॉव जाने का मौका मिला, पंचायत चुनावों में जिस धन तरह पैसे और शराब का वर्चस्व रहा है वह आने वाले समय के लिए शुभ संकेत नहीं है. और यही प्रक्रिया अब विधानसभा उपचुनावों में भी देखने को मिल रही है. सवाल यह है कि पहाड जो आज भी अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए वंचित है, और लोगों को कई किमीं चलकर अपने गांव तक का सफर तय करना पडता है, लेकिन इस तरह से चुनावों में बेहताशा पैसे खर्च करना गले नहीं उतरता. सवाल स्वाभाविक है कि कोई व्यक्ति पंचायत चुनाव के लिए लाखों रुपये क्यों खर्च कर रहा है? उत्तर स्पष्ट है कि उसके लिए पंचायत प्रतिनिधि बन कर गांव या क्षेत्र का विकास करने का मुद्दा बाद में है बल्कि उसकी नजर आने वाले उस फंड पर है जो केन्द्र और राज्य,तथा ब्लाक स्तर ग्राम सभाओं क्षेत्र को आवंटित होता है। सवाल यह है कि पहाड़ों में किस तरह की राजनीति की जा रही है। आज भी अगर आप पहाड़ी क्षेत्र में जाएं तो लोग बिजली, पानी, सड़क जैसी आवश्यक सुविधाओं से वंचित दिखाई देते हैं। यही नहीं, शिक्षा तथा स्वास्थ्य की स्थिति तो और भी जर्जर है। एक तरफ जहां अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है तो दूसरी ओर स्कूल-कॉलेज में शिक्षकों की। इन क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ने से युवा पीढ़ी भी शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।आज भी अगर आप पहाड में किसी भी ग्रामसभा का भ्रमण करेंगे तो आपको मूलभूत सुविधाओं की कमी मिलेगी, गांव को मिलने वाले बजट में शायद 60 फीसदी से ज्यादा बजट केवल सीसी मार्गों,या गूल निर्माणों (भले ही उस में पानी ना आये) में खर्च होता है क्योंकि यह पंचायत प्रतिनिधियों के लिए सबसे फायदे का सौदा होता है।कहावत है कि “पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ में नही रूकती” और इन्हीं युवाओं के लिए रोजगार तथा रोजगार के लिए गांव से होते पलायन को रोकने के लिए दृष्टिकोण आज भी किसी राजनैतिक दल या क्षेत्रीय प्रतिनिधियों के पास नहीं है। पहाड अपनी मूलभुत सुविधाओं के लिए तरस रहा है और वहां पर बचे लोग केवल एक वोट बैंक बनकर रह गये हैं जिनकी याद शायद चुनावों के समय ही आती है। इन सब समस्याओं का हल हो सकता है जब लोग खुद शराब और पैसे के प्रलोभन से उपर उठकर अपने अधिकारों को जानें और स्वविवेक से काम लें, अगर पंचायत स्तर पर कोई गडबडी की आशंका होती है तो सूचना के अधिकार का प्रयोग करें, यकीन मानिये आप काफी हद तक भ्रष्टाचार की इस जड को काट सकते हैं और अगर ये कटना शुरु हुई तो फिर विकास की वास्तविकता देखने को मिल सकती है।
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