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20 हजार करोड़ में भी गंदी गंगा

"Ek Kona"
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट गंगा सफाई अभियान का एक्शन प्लान तैयार हो गया है। यह कहना कतई अतिश्योजक्ति नहीं होगा कि जिस गंगा के सहारे और आधार पर भारत देश की संस्कृिति निर्भर है वहीं गंगा नदी अब धीरे-धीरे गंदे नालों का रूप ले ली है। मोदी ने वाराणसी की लोक सभा सीट को चुनते हुए वहां के आम जनों को यह वादा किया था कि जिस तरह से गुजरात में साबरमती साफ-सुथरी है ठीक उसी तरह से गंगा को भी साफ किया जाएगा। प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले नरेंद्र मोदी ने जो पावरफुल मंत्रियों की कमेटी बनाई वो गंगा की हालत सुधारने के लिए ब्लू प्रिंट तैयार कर रही है। उस कमेटी में शामिल हैं।

गंगा पर मोदी की एक्शन कमेटी:
• उमा भारती- नदी विकास और जल संसाधन मंत्री
• नितिन गडकरी- शिपिंग और परिवहन मंत्री
• प्रकाश जावडेकर- -सूचना एंव प्रसारण राज्य मंत्री
• पीयूष गोयल- कोयला एंव उर्जा मंत्री
• श्रीपद नाइक- पर्यटन मंत्री ।

है क्या गंगा सफाई अभियान?

सबसे पहले ये जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर गंगा सफाई अभियान है क्या? और आज तक ईस पर हुआ क्या?

  • दरअसल गंगा सफाई अभियान के लिए जल संसाधन एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय ने नया एक्शन प्लान तैयार करना शुरू कर दिया है. जिसमें परत दर परत ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं जिससे पता चला है कि गंगा की हजारों एकड़ जमीन में कृषि पैदावार हो रही है.
  • गंगा की जमीन में मजदूरों के छोटे-छोटे गांव बसा दिए गए हैं. बड़े शहरों के किनारे गंगा की जमीन पर स्थानीय नेताओं व उद्योगपतियों के आलीशान मकान, डेयरी फार्म विकसित हैं और इनसे निकलने वाली गंदगी गंगा में बहाई जाती है.
  • इतना ही नहीं, यह भी पता चला है कि गंगा सफाई अभियान के नाम पर राज्य सरकारों ने समय-समय पर जो शपथपत्र दिए हैं वह भी वास्तविकता से परे है.
  • गत वर्ष समग्र गंगा यात्रा के नाम पर साध्वी उमा भारती के नेतृत्व में गंगोत्री से गंगा सागर तक हुए तमाम कार्यक्रमों में इस तरह के नजारे देखे गए थे जिसमें गंगा के किनारे खाली जमीन का दोहन हो रहा है.
  • अब उमा भारती को ही इस मंत्रालय की बागडोर सौंप दी गई है जिसकी वजह से गंगा माफियाओं की बेचैनी बढ़ गई है. क्योंकि यह पहला मौका है जब गंगा सफाई को प्रधानमंत्री ने गंभीरता से लिया हो और किसी मंत्रालय को इसकी अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई हो.
  • वैसे तो इस काम में कई मंत्रालयों को सक्रिय कर दिया गया है और अवकाश के बावजूद गंगा पर बैठकें चल रही है मगर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार व पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों को भी महत्व देना है.
  • इन राज्यों में गैर भाजपा सरकारों की वजह से कितना समर्थन मिलता है, यह तो समय बताएगा मगर गंगा-भूमि के दोहन पर राज्य सरकारों की चुप्पी को गंगा आंदोलनकारी मुद्दा बनाएंगे जिसका लाभ आने वाले समय में भाजपा को ही मिलेगा.
  • गंगा सफाई के नाम पर देश के ही नहीं बल्कि विदेशी संगठनों ने भी मोदी सरकार को अपना समर्थन दिया है जिसमें 80 देशों में फैला अखिल विश्व गायत्री परिवार सबसे आगे है जिसके मुख्यालय शांति कुंज हरिद्वार में गत वर्ष जून में मोदी स्वयं गए थे.
  • सरकार ऐसे सभी संगठनों को भी गंगा अभियान में शामिल करेगी जो गंगा में अविरल एवं निर्मल धारा के लिए काम कर रहे थे. इससे सरकार को गंगा माफिया के खिलाफ आम जनता का समर्थन भी मिलेगा.
  • क्योंकि जब तक इन माफिया को गंगा-भूमि से निकाला नहीं जाएगा तब तक अविरल धारा की कल्पना पूरी नहीं होगी.
  • गंगा एक्शन प्लान को अंतिम रूप देने से पहले मंत्रालय ने एक सेटेलाइट सर्वे कराने का भी फैसला किया है जिसके बाद राज्य सरकारों से गंगा माफियाओं के प्रति नरमी को लेकर उनसे जवाब तलब किया जाएगा.

सफाई के बहाने अरबों रुपए बहाए

  • पिछले तीन दशक से गंगा सफाई अभियान चल रहा है। इस अभियान में अब तक हजारों करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं पर अब तक गंगा साफ नहीं हुई, बल्कि उलटे और मैली हो गई है।
  • 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ‘गंगा एक्शन प्लान’ शुरू किया था। इसके लिए 901.71 करोड़ रुपये आवंटित किये गए थे और उद्देश्य था गंगा को प्रदूषण मुक्त करना। किन्तु मानो वह पैसा गंगा के जल में बह गया और गंगा प्रदूषित ही रह गई। जबकि गंगा एक्शन प्लान के तहत सालों तक गंगा सफाई का अभियान चला।
  • सन् 2000 में इस योजना का विस्तार किया गया फिर भी अपेक्षित काम नहीं हो पाया।
  • 2008 में गंगा एक्शन प्लान-2 का शुभारम्भ किया गया। इसके बावजूद गंगा और प्रदूषित होती जा रही है। गंगा में प्रदूषण का मुख्य कारण है शहरों के गन्दे नाले।
  • गंगा एक्शन प्लान का काम था इन गन्दे नालों को गंगा में गिरने से रोकना पर यह काम बिलकुल नहीं हुआ। ऊपर से बिजली बनाने के लिए गंगा पर अनेक बांध बनाए गए हैं।
  • अप्रैल 2011 में गंगा नदी की सफाई के लिए 7,000 करोड़ रुपए की परियोजना मंजूर की गई। इसे लागू करने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण को दी गई।
  • इसमें 5,100 करोड़ रुपए केंद्र सरकार और शेष 1,900 करोड़ रुपए उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों को वहन करना था।
  • पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति के बैठक में इसे मंजूरी दी गई। विश्व बैंक ने इस परियोजना के लिए कर्ज के रूप में केंद्र सरकार को एक अरब डॉलर (करीब 4,600 करोड़ रुपए) की सहायता मुहैया कराया है।
  • गंगा सफाई परियोजना की समय-सीमा आठ वर्ष तय की गई है। इसके तहत किए जाने वाले कार्यों में गंगा नदी घाटी में पर्यावरणीय नियमों का सख्ती से पालन, नगर निकायों के गंदे पानी के नालों, औद्योगिक प्रदूषण, कचरे व नदी के आसपास के इलाकों का बेहतर और कारगर प्रबंधन शामिल हैं।
  • पिछली बार की आपदा में अनेक बांध बह गए हैं। इस वजह से गंगा की धारा में वह गति नहीं रही है जो कि गंदगी को बहा सके। इसलिए अनेक संगठन और लोग मांग कर रहे हैं कि गंगा की धारा को मत रोको और बिजली बनाने के लिए छोटे बांध बनाओ। इन मांगों को लेकर अब तक अनेक यात्राएं और गोष्ठियां हो चुकी हैं।

गंगापरबनरहींपरियोजनाएं

  • टिहरी पीएसपी
  • तपोवन विष्णुगढ़
  • लता तपोवन
  • स्वर कुड्डू
  • तांगू-रोमाई
  • श्रीनगर
  • फाटा ब्यूंग
  • सिंगोली भटवारी

अंग्रेजों ने भी किया था गंगा की धारा रोकने का प्रयास
गंगा की धारा को रोकने की बार-बार कोशिश की गई। लेकिन हर बार जनता ने सरकार के इस तरह के निर्णय पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। गंगा की पवित्रता और अविरलता को लेकर समय-समय पर आंदोलन होते रहे हैं। ब्रिटिश शासनकाल में भी गंगा की धारा को रोकने की कोशिश की गई थी। उस समय भी हिंदू जनमानस में इसको लेकर तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी। लेकिन आम जनता की जनभावना को समझते हुए विदेशी सरकार को अपने निर्णय से हटना पड़ा था।

गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का सच

  • फरवरी, 2009 में भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की स्थापना की है। केंद्र सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा देने का फैसला किया है। इसके साथ एक सशक्त योजना, वित्त, निगरानी और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत गंगा नदी के लिए समन्वय का अधिकार है। प्राधिकरण का अध्यक्ष प्रधानमंत्री को बनाया गया है। जिसमें गंगा जिस राज्य से बहती है इस राज्य के मुख्यमंत्रियों को इसका सदस्य बनाया है। अर्थात उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल, पर्यावरण एवं वन मंत्री, वित्त शहरी विकास, जल संसाधन, विद्युत, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के साथ ही योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी इसके सदस्य हैं।
  • इस समिति की पहली बैठक नई दिल्ली में 05 अक्टूबर, 2009 को प्राधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में किया गया था। इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि कोई अनुपचारित नगर निगम के सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट 2020 तक गंगा में प्रवाहित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। गंगा परियोजना के तहत गंगा नदी को साफ करने के नाम पर 960 करोड़ रुपए का भारी राशि खर्च किया गया है अब तक कोई सफाई नजर नहीं आती है।
  • इसमें कोई जवाबदेही तय नहीं कि गई है। 13 दिसंबर, 2000 को कैग की जो रिपोर्ट आई थी। जो बाद में पीएसी रिपोर्ट के लिए आधार बना था। उसमें कहा गया है कि बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यो द्वारा 36.01 करोड़ रुपए गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए दुरुपयोग किया गया था। जिसमें ज्यादा पैसा वाहन, कंप्यूटर की खरीद, कार्यालय का निर्माण और असंबंधित योजनाओं पर खर्च किया गया।
  • सीएजी ने निष्कर्ष निकाला है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों के पानी की गुणवत्ता बहाल करने के उद्देश्य से 15 साल से अधिक समय में 901.71 करोड़ के कुल व्यय के बावजूद अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम नहीं है। सरकार योजना के कार्यान्वयन की दिशा में 987.88 करोड़ रुपए जारी किया था और मार्च 2000 तक 901.71 करोड़ के व्यय की सूचना हो चुका था। गंगा के नाम पर इस समय सरकारी लूट जारी है। गंगा को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर जितने भी कार्यक्रम चल रहे हैं अधिकांश में पैसा बनाने का खेल चल रहा है।

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