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राजनाथ के रणबांकुरे
बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा हो गयी . कुछ एक को छोड़ दिया जाय तो सभी चेहरे वो ही थे जिनका नाम मीडिया में कई दिनों से जिक्र हो रहा था. रविशंकर प्रसाद को प्रवक्ता पद से हटाना थोडा आश्चर्य जनक रहा क्योंकि रविशंकर प्रसाद एक ऐसे वक्ता हैं जिनकी तर्कों के आगे कई बार विपक्ष भी नतमस्तक हो जाता है. वहीं यशवंत सिन्हा को भी जिम्मेदारी से पूरी तरह मुक्त कर एक संदेश देने की कोशिश की गयी है कि पार्टी से बढकर कोई नहीं होता. एक बार तो टीम देखकर ऐसा लग रहा है कि पार्टी एक बार फिर ठंडे पडे हिन्दुत्व के मुद्दे को लेकर आगामी चुनाव में जा सकती है ,टीम तो पूरी तरह तो युवा है ही साथ ही ऐसे नेता भी है जिनकी छवि एक कट्टर हिन्दुत्व की रही है चाहे वो उमा भारती हों या फिर वरुण गांधी, अमित शाह….. लिस्ट लंबी हो सकती है.. कुछ समय पहले गडकरी को आरोपों के आधार पर अध्यक्ष पद से ईस्तीफा देना पडा था, जबकि गडकरी पर अभी तक कोई आरोप सिध्द नहीं हुआ है. वहीं अमित शाह को महासचिव का महत्वपूर्ण देकर एक संभावित विवाद को जन्म को दिया है, अमित शाह वहीं शख्स हैं जिनपर ईसरत जहां फर्जी इनकाउंटर केस में चार्जशीट दायर हो चुकी है.
ईस टीम में मोदी का वर्चस्व साफ दिखायी दे रहा है, टीम में संतुलन का ध्यान रखने की भी कोशिश की गयी है. मोदी को संसदीय बोर्ड में जगह मिलने का मतलब है कि प्रधानमंत्री पद की दावेदारी का एक बैरियर पार करना, लेकिन शिवराज को नजरदांज करना राजनाथ के लिए थोडा मुश्किल जरुर रहा होगा. मोदी की छवि अगर विकास करने वाले नेता की रही है तो शिवराज की छवि भी एक साफ,लोकप्रिय और विकास करने वाले नेता की रही है जो अपने काम का बखान खुद बहुत कम करते हैं, अगर मोदी के नेत्रत्व में गुजरात में चौथी बार बीजेपी की सरकार बनी है तो , मध्यप्रदेश में अपने कार्यों की लोकप्रियता के कारण शिवराज तीसरी बार ये कारनामा दोहराने को तैयार हैं. जिस समय बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा हुयी उस समय शिवराज टिवटर पर अपने विकास और जीडीपी का बखान कर रहे थे.. टीम को लेकर कुछ असंतोष भी आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है, राजनाथ ने ही 2006 में मोदी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर किया था. लेकिन आज मोदी एक ऐसे ब्रांडेड आईकन बन गये हैं कि उन्हें आप चाह कर भी नजरदांज नहीं कर सकते और दबे मन से ये बात कांग्रेस को पता है कि मोदी ब्रांड उसके लिए आने वाले चुनाव में मुश्किलें खडी कर सकता है.. लेकिन सवाल ये भी उठता है कि जिन लोगों को जिम्मेदारी दी गयी है कि वो कितनी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभा पाते हैं क्योंकि ईनमें से कुछ नाम ऐसे भी हैं जो पहले भी कार्यकारिणी में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं लेकिन सक्रियता के नाम पर वो शायद कभी कभार ही पार्टी की बैठकों में गये हों..
राजनाथ के लिए लिए सबसे बडी चुनौती अपने घर की होगी,जहां पार्टी की आपसी कलह के कारण के कारण लोंगो में विश्वास लगातार घट रहा है, और अगर 2014 में बीजेपी को सत्ता में लाना है तो सत्ता के ईस मुख्य मार्ग को दुरूस्त करना होगा जिसके लिए ईस नयी टीम को जमीनी स्तर पर कार्य करके पार्टी को दुबारा खडा करना होगा. कुल मिलाकर देखा जाय तो टीम यूवा है लेकिन अनुभव का मिश्रण थोडा आडे आ सकती है क्योंकि कई चेहरे ऐसे हैं जिनके लिए यह पहला चुनावी अनुभव होगा.और ऐसे में हर टीम मेम्बर की इच्छा होगी कि अपने डेब्यू मैच में भले ही शतक ना लगा पाये लेकिन ऐसी पारी जरुर खेल सके जो टीम को उसके लक्ष्य तक पहुंचा सके. आखिर जीत तो जीत होती है चाहे वो आखिरी गेंद पर एक विकेट से क्यों ना हो….
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