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वादों एंड बयानबाजी के बीच उत्तर प्रदेश चुनाव

"Ek Kona"
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उत्तर प्रदेश चुनावों को लेकर कयाशबजी और बयानबाजी का दौर जरी है,नोटिस और फटकार के बावजूद भी केंद्रीय कानून मंत्री की मुसलमानों के लिए आरक्षण पर बयानबाजी जारी रहने पर अब चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति से गुहार लगाई है। तो पार्टी महासचिव और मध्‍य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह तो चुनाव आयोग को ही नसीहत दे डालते हैं ,जौनपुर में केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बेहद बुजुर्ग बताते हुए उनको अवकाश लेने की सलाह दे डाली तो गोरखपुर में सांसद आदित्यनाथ ने घोषणा कर दी है कि विधानसभा चुनाव में किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा। अलग अलग चेंनल और पेपर अपने अपने सर्वे में सीटों का जोड़ भगा करने में लगे हैं , हेर जगग्ह चुनाव को लेकर चर्चाओं का दौर गरम है ,लेकिन इन सब बातो के बीच तीन राज्यों में हुए चुनाव और बाकि दो ने होने जा रहे चुनावों में असल मुद्दे गायब से हो रहे हैं चाहे वो भरष्टाचार हो या महंगाई या कला धन , या अन्ना के अनोद्लन, जिससे एक क्रांति और अलख सी सरे देश में जगी थी वो मनो गायब सी हो गई है.जिस तरह से दोनों चरणों के मतदान के प्रचार के दौरान अख़बारों, और राजनातिक पार्टियों ने मुस्लिम शब्द पर जोर दिया है क्या उसकी वास्तव में आज की स्थितियों में आवश्यकता है ? हेर एक राजनातिक दल अपने फायदे के लिए किसी भी हद में जाने को तैयार है जिसका अंदाज़ा उनकी बयानबाजी से लगाया जा सकता है | भी राजनीतिक दल जाति और मजहब के आधार पर मतदाताओं को गोलबंद करने में लगे हुए हैं पूरे देश में महत्वपूर्ण योगदान देने के किये अब जनता को प्रदेश को तैयार करना ही होगा पर दुर्भाग्य से अभी तक हम बिहार से कुछ भी नहीं सीख पाए हैं जिसने जाति आधारित राजनीति से बहुत पहले ही पीछा छुड़ा लिया है और अब वह तेज़ी से आगे बढ़ने वाला प्रदेश बन चुका है. यूपी को जो भी चाहिए वह क्या नेता वह दे पाने में सफल हो रहे हैं ? शायद नहीं क्योंकि अभी भी इन लोगों को लगता है कि प्रदेश में जातिवाद को हवा देकर बहुत सारे काम करवाए जा सकते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि जातिवाद के आगे विकास के मुद्दे छोटे पड़ जाया करते हैं और आने वाले समय में प्रदेश इससे बाहर निकलना चाहता है या नहीं इसकी झलक इसी चुनाव में दिखाई देने वाली है |

ताबड़तोड़ चुनावी सभाओं को देखते हुए यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर राजनेता केवल चुनाव के समय ही आम जनता से मिलना-जुलना क्यों जरूरी मानते हैं?इस बार तो हद कर दी सारी की सारी पार्टियों ने सभी की नजर में सिर्फ उत्तर प्रदेश ही दिख रहा है,वैसे तो उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव हमेशा से राष्ट्रीय महत्व के रहे हैं, इस बार तो ऐसा लग रहा है मनो की जंग छिड़ गई हो और सेनाये सिर्फ फताये चाहती है चाहे कैसे भी क्यों न मिले पर दुश्मन को मार गिरना है , जीतनी शक्ति सभी राजनेतिक दल यहाँ पर लगा रहे है यदि इतने शक्ति कास पहले पूरी ईमानदारी के साथ उत्तर प्रदेश को विकसित करने में पहले लगते तो शायाद उत्तर प्रदेश कुछ और ही होता | पहले कितनी बार कांग्रेस की सरकार रही हैं उत्तर प्रदेश में उस समय से लेकर सभी ने सिर्फ उत्तर प्रदेश से खुद का ही विकास किया है . लगभग सभी मुख्य राजनेतिक दलों ने अपने -अपने घोषणा पत्र में लैपटॉप मुफ्त देने कि बात कही है , लेकिन सवाल ये है कि क्या मुफ्त लैपटॉप या टैबलेट बांटने से लोगों का उत्थान हो जाएगा? या इसकी बजाय छात्रों की शिक्षा पर समुचित ध्यान देना जरूरी है? सड़क, बिजली और पानी, चिकित्सा और किशन आत्महत्या जैसी समस्याएं और घटनाये आज भी लोगों के बीच बनी हुई हैं। सवाल बहुत हैं. लेकिन जवाब तो जनता को ही देना है ,उम्मीद है कि जनता इस बार इस तरह के लोक-लुभावन वायदों में न फंसकर एक सही, सशक्त और जिम्मेदार सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी |

किशोर जोशी

अल्मोड़ा

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