"Ek Kona"
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आज से हिन्दू नव वर्ष आरम्भ हो रहा है लेकिन कितने दुःख की बात है की हम्मे से अदिकंश युवा पीडी को ये पता ही नहीं है की आज से हमारा नव वर्ष आरम्भ हो रहा है ?इसमे किसे दोषी कहे ?अगर आज इसकी जगह पहली जनुवरी होती तो पूरा देश इसे सेलिब्रेट कर रहा होता. इस भाग-दोड़ बरी जिंदगी में हम पाश्चत्य संस्कृति में इतने वयस्त हो चुके है की हमे कुछ अपने रीती रिवाज़ ही पता नहीं है. मेरा प्रश्न ये है की क्या हम दिन प्रतिदिन अपने आप को अपने आपने से ही अलग कर रहे है ?क्या हम अपने रीती- रिवाजों को भूलते जा रहे है ? इसका उत्तर जो भी पर ये सच है की हम इस पाश्चात्य की आंधी में हम कुछ इतने आगे जा चुके है की हमें ये ही पता नहीं है की हमारे अपने भी कुछ सामाजिक दायित्व हैं
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