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महकता आंचल और समर्पण

"Ek Kona"
"Ek Kona"
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क्या यह वही प्रिया थी जिस पर सारे स्कूल के लडके जान छिडकते थे?, हर समय बात करने के लिए कोई ना कोई बहाना ढूढते थे. क्या यही प्रिया थी जो पूरे ग्रुप के साथ-साथ टीचर की भी सबसे चेहती स्टूडेंट में शुमार थी????….. कतई नहीं, पर सच्चाई से ईनकार भी तो नहीं किया जा सकता था… कहते हैं ना कि समय सबसे बलवान होता है.. जिन हालातों में आज उससे सामना हुआ था मैं खुद विश्वास नहीं कर पा रहा था.. अचानक जेहन में कई यादें एक साथ उभर आयी…..
12 वीं कक्षा की बात है अंग्रेजी की क्लास चल रही थी ,उससे कुछ देर पहले हमारी मुलाकात स्टाफ रुम में हुयी थी..यह हमारी 3rd क्लास साथ में थी सुबह से, लेकिन अभी तक एक दूसरे से अंजान थे, मैं स्कुल का पुराना छात्र था साथ में अपनी गिनती एक मेहनती. कुशाग्र एंव होनहार छात्र के रुप में होती थी ,या यूं कहें कि जनाब की एक अच्छी रेपो थी पूरे स्कूल में.. पिताजी के टांसफर होने का कारण उसने (प्रिया) ने अपने स्कुल में नया एडमिशन लिया था वो भी अपनी क्लास में, यानी 12 कक्षा में..वो शहर में पढी थी, लेकिन यहा गांव के स्कूल में उसके पिताजी के हिन्दी के प्रवक्ता के रुप में प्रमोशन होने के साथ ट्रांसफर हुआ था, मास्साब को थोडा श्वास की बीमारी थी सो गांव में कोई दिक्कत ना हो ईसलिए मास्साब अपने साथ बेटी को भी साथ में ले आये थे. बेटी सुन्दर होने के साथ साथ पढने में भी बहुत तेज थी और थोडी फ्रेंक टाईप की लडकी थी तो चर्चे पूरे स्कूल में हो गये थे तीन दिन के अन्दर. पहली बार मुझे भी अपनी विद्धवता की कुर्सी हिलती हुयी नजर आने लगी अपनी विद्धवानी के चर्चे उस तक भी पहुच चुके थे, सो अंग्रेजी की क्लास खत्म होते ही थोडा झिझकते हुए मुझसे अंग्रेजी के कुछ ऩोट्स मांगे. क्योंकि वो नोट्स मेरे अलावा किसी के पास नहीं थे पूरे क्लास में.. मैने भी नोट्स वाली नोट बुक निकाली और दे दी. थैंक्स कह कर वो अपने नयी सहेलियों के साथ चले गयी. कुछ देर तक में भी सोचता रहा कि जो नोट्स पुरे क्लास के सिर्फ एक बंद किताब की तरह थे उसे क्यी जरुरत पडी फिर समझ आया कि वो वाकई में पढाकू होगी..
बात ये थी कि क्लास में केवल 12 छात्र, और 16 छात्राएं थी,ईन 28 में से अंग्रेजी के केवल 10 विद्यार्थी थे 8 लडके और 2 लडकिया..उस समय अंग्रेजी का ऐसा हौव्वा था कि अधिकतर स्टडेंट्स संस्कृत लेना पंसद करते थे गांव के स्कूलों में. और उपर से ईंग्लिस का टीचर ईतना खडूस की टीचर के डर से भी लोग अंग्रेजी नहीं लेते थे. वो थोडी सी भी गलती पर पहले थप्पड जिससे कान में घंटी बज जाती थी उसके बाद पुरे 30 मिनट के पीरीयड में क्लास के बाहर मुर्गा बना के रखते थे ..
खैर मैंने उसे नोट्स दिये और दिन बीता और शाम को घर आ गया.. जाडों के दिन थे घर आने के बाद क्रिकेट खेलने चल दिये रोज की तरह मित्र मंडली के साथ . शाम के 5,30 पर घर आया 7 बजे खाना खाकर 9 बजे सो गया. गांव में तो जाडों के दिनों में 9 बजे आधी रात हो जाती है..
दूसरे दिन फिर अपने टाईम पर स्कूल आना….. धीरे-धीरे समय बीतता गया क्लास में उसके पढाई के चर्चे सुर्खियों पर थे, पहली बार अपनी टक्कर की कोई स्टूडेंस मिला था..कुछ तो खास था उस लडकी में जो औरों से उसे अलग करता था…. मैं भी थोडा अकडू किस्म का छात्र था .जो बहुत कम बातें किया करता था..और ये बात शायद उस तक पहुच चुकी थी…
अचानक कुछ दिनों से वह कालेज नहीं आ रही थी. पता चला कि वह घर गयी थी.. पहली बार मुझे किसी के बिना क्लास अधूरी सी लग रही थी.. कुछ दिन यू ही बीते थे कि एक दिन में क्लासरुम में अकेला बैठे कुछ काम कर रहा था कि अचानक एक आवाज आती है- कमल प्लीज…पीछे देखा तो प्रिया की मासूमियत भरी आवाज थी..
मैंने कहा – हाय.. हा बोलो….
प्रिया बोली –मैं किसी कारणवश घर चले गयी थी क्या आपकी अंग्रेजी की कॉपी मिल सकती है एक दिन के लिए…
मैंने थोडा सकुचाते हुए कहां- हाँ हाँ बिल्कुल..ये लो कह कर मैंने अंग्रेजी की ग्रामर की कॉपी निकाल कर उसे दे दी.. और थोडा बातचीत की..जब तक मैं और कुछ बात करने की हिम्मत जुटा पाता…. वो थैंक्यू कह कर चले गयी.. अगले दिन उसने कॉपी वापस करते हुए कहा कि थैंक्स कमल. एक औऱ बात आपकी राईटिंग बहुत अच्छी है. मैंने सर हिलाते हुए मुस्कुराते हुए थैंक्स कहा… मेरी ईस थैंक्स की जबाव जिस मुस्कुराहट के साथ मिला था कि वो मुस्कुराहट के हमेशा के लिए दिल में कैद सी हो गयी थी..
खैर दिन बीतते गये और पता नहीं चला कि प्रिया और मैं कब एक अच्छे दोस्त बन गये थे..य़ा यू कहें कि दोस्ती सी भी आगे जा चुके थे और इसके कुछ कारण भी थे हम दोनों में कुछ विशेषताएं ऐसी थी जो दोंनो को एक करती थी. जैसे- उसे भी एकान्त पसन्द था मुझे भी, उसे मुकेश के गाने पसन्द थे.मुझे भी, सबसे बडी बात जो पता चली थी वो एक अच्छी चित्रकार भी थी.. ….अब जब भी खाली टाईम होता हम दोंनों साथ होते…और अपनी बातें शेयर करते थे.. मैं पूरे स्कुल का मानिटर था. और अच्छा वक्ता होने के साथ-साथ एक गायक भी था…
समय बीतता गया पता नहीं चला कि कब एक्जाम की डेट आ गयी. एक्जाम से पहले जूनियर छात्रों ने हमें विदाई देने के लिए एक्जाम से 10 दिन पहले एक विदाई समारोह रखा..ईतने साल एक साथ पढने के बाद सब एक दुसरे से अलग हो रहे थे, या यु कहें कि एक दूसरे से बिछ़ड रहे थे…. विदाई समारोह में हर किसी को कुछ ना कुछ जरुर पेश करना था सो मैंने भी प्रिया की पसंद का एक गीत गाया और कुछ ग्रुप फोटो लिए जो आज भी मेरे जेहन में ताजा हैं.. विदाई समारोह खत्म होने के बाद सब एक दुसरे को गिफ्ट दे रहे थे.. सबकी नजरें हम दोनों पर थी.. फाइनली प्रिया मेरी तरफ आयी उसने मूझे एक बडा सा पैकेट दिया, और चुपके से कहा कि ईसे घर जाकर खोलना…अपनी तरफ से मैंने भी उसे एक पैन का पैकेट दिया..
मैं घर आया मेरी बेसब्री बढती जा रही थी.. आते ही मैंने पैकेट खोला. देखा उस में एक बेहद खूबसुरत पेंटिग थी…कुछ ईस तरह की-एक अंजान सी लडकी बैठी और दो घुटनों के बीच में सर रखकर और दोंनो हाथ से घुटनों को बाँध के मानो किसी का ईंतजार करते करते थक गयी हो… कुछ शब्द भी लिखे थे – जाने वाले कभी कभी लौट कर नहीं भी आते . सिर्फ राहों पर उडते हुए सन्नाटों का गुबार छोड जाते हैं.. कब तक कोई सन्नाटे भापता रहे जिन्दगी तो चलती रहती है…….. एक कागज का टुकडा भी साथ में लिख कर भेजा था जिसमें लिखा था कि- कल 2 बजे शिव मंदिर पर मेरा इंतजार करना यदि मैं पहले आयी तो मैं आपका ईंतजार करुगी..
शिव मंदिर के पीछे का बाग प्राय एक ऐसा स्थान होता था जहाँ पर लोग या यू कहें कि कपल्स अपना समय व्यतीत करते थे.. मैं उससे पहले पहुंच चुका था. मेरे पहुचने के कुछ देर बाद ही वह भी पहुंच चुकी थी.. आज वो स्कूल ड्रेस में नहीं थी, आसमानी रंग के सफेद धारियों वाले सूट में वो बेहद खूबसूरत लग रही थी, थोडी देर चुप रहने के बाद बातों को सिलसिला शुरु हुआ..बहुत सी बातें हुयी पता नहीं लगा कि कब एक घंटा बीत गया. उसके पापा के भी आने का टाईम हो गया था सो वो जाने लगी जाते जाते उसने कहा कि एक बात पूछ सकती हूँ- कहीं तुम्हें मूझसे प्यार तो नहीं हो गया है…..
मैनें कहा कि हाँ और ये तुम्हें भी पता है…बडे धैर्य के साथ के मैंने कहा.
कमल में तुम्हे एक सच्चे दोस्त के रुप में प्यार करती हूँ
तो मैंने कब कहा कि मै तुम्हें एक प्रेमिका के रुप में प्यार करता हूँ .. प्रिया प्यार एक ऐसी चीज है जो किसी से भी हो सकता है चाहे गुरु शिष्य का हो या माँ-बाप और भाई बहन का हो या प्रेमी प्रेमिका काहो…. यह एक ऐसा अद्भुत बीज है जिससे अंकुरित होने वाला पौधा अलग भी हो सकता है
मेरी नजर में दोस्ती से बढकर जज्बात का कोई रिश्ता नहीं होता- मैंने कहा.
बिल्कुल सही प्यार एक ऐसा जज्बा है जो हमारे जीवन को खूबसूरत बनाने के साथ साथ रिश्तों में सौहार्दता लाता है- प्रिया बोली.
मैंने कहा-प्यार तो एक अहसास है जो सिर्फ महसूस किया जा सकता है.. वह बोली – बिल्कुल सही कहा..
सही कहा क्या कह रही हो ये तब समझ में आयेगा जब दिल दे बैठोगी किसी को… अभी तो तुम जवा दिलों की धडकन हो …और हो सकता है कि कल हो सकता है कि कल को आप परदे में लम्बा घुघंट किये रहो.. –मैंने कहा
नहीं मैं ऐसे घर में शादी नहीं करुगी.. प्रिया बोली
प्रिया मत भूलो कि मजबूरी , हालात , और परिस्थितियां ऐसी चीजें है जो ईंसान को कुछ भी करने पर मजबूर कर सकती हैं
अंत में जाते जाते मुझे एक पैकेट थमा कर बोली यह तुम्हारे लिऐ मेरी तरफ से एक और तोहफा है जिसमें कुछ पैन और पेंटिग्स है , पेन से तुम रचनाए और कहानिया लिखना और मेरी ईन पेटिंग्स के माध्यम से मैं हमेशा आपके दिल के करीब रहूंगी.. पेपर खत्म हो गये थे औरे वह हमेशा के लिए के लिए अपने माँ के घर जा रही थी जाते जाते उसने मुझे एक डायरी दी और कहा कि मेरे लिए कुछ लिखो ताकि आप ईन शब्दों के माध्यम से हमेशा मेरे पास रहो मैंने बडे-बड़े शब्दों में लिख दिया “हमेशा यू ही हँसते रहो, कभी उदास मत होना. Love You lot……” जाने से पहले हमने दूसरे दिन मिलने का वादा किया जब वो जानी वाली थी … ये कह हम दोनों अपने –अपने घर की तरफ भारी मन से चल दिये..
नियत दिन जब वह जाने को तैयार होकर जाने लगी तो मैं भी घर मैं कुछ जरुरी काम बता कर बाजार की तरफ चल दिया पता था कि वह निकल चुकी है। मैं उसके पीछे कुछ दुरी बनाकर चलने लगा क्योंकि वह अकेले नहीं बल्कि अपने पापा और काव्या जो उसकी सबसे अच्छी दोस्त होने के साथ- साथ मेरी भी दोस्त थी, उसके साथ जा रही थी. और दोनों ने मुझे पीछे आते हुए देख लिया था…शिव मंदिर के पास आते –आते वो दोंनों ने अपनी चाल धीमी कर दी और मंदिर के मोड के पास हम मिले ज्यादा समय़ तो हमारे पास था नहीं कि हम ज्यादा बात कर पाते उपर से बिछडने का दुख अलग था, सो उसने एक बात पूछी की मैने जो कवितांए लिख कर लाने को कहा था लाये हो ना?(दरसअसल उसने मुझसे 2 कवितांए {poem} उसके बारे में लिख कर लाने को कहा था, क्योंकि मैं समय मिलने पर लेखन कार्य भी करता था, जो मेरी Hobby का एक हिस्सा था )मैंने ना में सर हिलाया.. तो वह थोडा गुस्सा करते हुए करते हुए बोली-“ क्या तुम मेरे लिए एक कविता भी नहीं लिख सकते?” “नहीं प्रिया मैं तुम्हारे लिए पूरी कविता कोष लिख रहा हूँ और जैसे ही Complete होगी सबसे पहले तुम्हें भेजूंगा”- मैंने कहा थोडी देर के लिए हम चुप रहे एक दुसरे से बिछडने का दुख था… अंत में रुआंसे गले सो वो बोली- पता नहीं अब कब मिलन होगा हमारा… मैंने उसका हाथ अपने हाथ में रखते हूए कहा “प्रिया हम जल्द ही मिंलेगे और एक दूसरे के साथ चिट्टी के जरिये साथ में रहेगें,”
ईतना कह कर हम अलग हो गये और वो चल दी…मैं भी कुछ दूरी बनाकर उसके पीछे पीछे चल दिया, स्टेशन पर बस उसका ईंतजार कर रही थी.और मैं दुर से उदास मन से उसे देख रहा था..और धीरे धीरे से बस जाने लगी वो किनारे की सीट पर बैठी थी मैं तब तक उसे देखता रहा जब तक बस नजरों से ओझल नहीं हो गयी… और मैं यहीं सोच रहा था कि शायद चलते रहने का नाम ही जिंदगी है …. तत्पश्चात मैं थोडी देर बाजार में रुक कर भारी मन से घर को चल दिया, घर जो बाजार से 3 किमी की दरी पर था लेकिन आज वह कई किमी के बराबर लग रहा था…
समय बीतता रहा चिट्ठी के जरिये हम लगातार सम्पर्क में रहे क्योंकि उस समय फोन बहुत कम हुआ करते थे पूरे गांव में एक सेटेलाईट वाला फोन था वो भी हमेशा वयस्त रहता था और घर से थोडा दूर भी था …कुछ समय बीतने के बाद 12वीं के रिजल्ट भी आ गया उम्मीद के मुताबिक मैं और प्रिया First Division पास हुऐ थे. अब आगे की पढाई के लिए शहर जाना पडता था क्योंकि आस पास 50 किमी के एरिया में कोई कालेज नहीं था..सो घर वालों ने पुरी हिदायत और कुछ शर्तों के साथ से शहर पढने को भेज दिया और किराये का एक कमरे की वयस्था पहले ही किसी रिश्तेदार ने करवा दी थी और गाँव के एक लडका रुम पार्टनर भी मिल गया था..मैं बहुत खुश था क्योंकि जिस शहर में कालेज था वहां से प्रिया का घर भी ज्यादा दूर नहीं था.और मन ही मन प्रिया से मिलने का प्लान भी बना लिया और चिट्ठी के जरिये ये बात उसे भी बता दी. साथ में ये भी बता दिया कि गांव के पते पर वह तब तक चिट्टी ना भेजे जब तक मैं उसे शहर में अपने नये ठिकाने का पता ना दे दूं..शहर की दुनिया थोडा अलग होती है ये तो पता था आखिर पढाई के लिए शहर आ ही गये..आने के एक हफ्ते के बाद प्रिया के से मिलने का प्लान बना लिया और चिट्ठी के जरिये उस तक बात पहुचा भी दी 10 दिन बाद उसका उत्तर भी आ गया साथ में उसने अपने पडोस के घर का लैंडलाईन नंबर भी लिखा था जो कि उसकी सहेली गीता का था और कुछ दिन पहले ही लगा था. और लिखा था कि केवल दोपहर के टाईम 1-2 बजे के समय फोन करना..मैं आज बहुत खुश था कि उसके जाने के बाद पहली बार बात होने वाली थी.. मैंने दोपहर में उस नबर पर फोन किया एक लडकी की आवाज आयी मैंने डरते हुए पूछा कि कौन बोल रही हैं उत्तर आया कि-“ मैं गीता आप कौन ?” मैंने कहा-“ मैं कमल !!” क्या प्रिया से बात करवा सकते हो.. वो बोली हाँ हाँ क्यों नहीं आप 5 मिनट बाद फोन करना कह कर उसने फोन काट दिया मैंने दस मिनट बाद फिर काल किया..लेकिन ईस बार दूसरी तरफ से एक अलग आवाज थी मैं कुछ सेकंड चुप रहा क्योंकि ये वहीं आवाज थी जिसे सुनने के मेरे कान महीनों से ईंतजार कर रहे थे..काफी देर बात हुयी एक दूसरे का हाल जाना वो स्कूल की दिनों की यादें ताजा की, और आगे की पढाई को लेकर बातें हुयी…बातें कहा खत्म होती हैं.. लेकिन फोन काटना भी जरुरी था क्योंकि पीसीओ का मीटर भी बडी तेजी से घूम रहा था. यह वो समय था जब लोकल काँल भी 2 रु प्रति मिनट थी. और घर से पाकेट मनी भी हिसाब से मिलती थी जिससे पुरे महीने भर चलाना होता था सो अगले हफ्ते बुधवार को मिलन चौक में ग्लोरी रेस्टोंरेट में मिलने के वादे के साथ फोन काट दिया.. शहर का ग्लोरी रेस्टोरेंट प्रिया के शहर की एक ऐसी जगह थी जहां शहर के प्रेमी जोडी अक्सर समय बिताया करते थे, जैसा कि प्रिया ने बताया था..आज शुक्रवार था सो पूरे चार दिन अभी बांकि थे और ये चार ऐसे लग रहे थे कि मानो चार हफ्ते हों…धीरे धीरे समय बीता और बुध्दवार आ गया रात को किसी का ईंतजार कितना कठिन होता है ये तो मैं बता नहीं सकता लेकिन उसके खत्म होने के बाद कितना सुखद अहसास होता है ये मैने आज महसूस किया था ..सो रात को नींद कहा आनी थी सो सुबह जल्दी नहा धो कर पूजा की,, भगवान भी आज शायद नाराज हो रहे होंगे क्योंकि आज पूजा भी शार्ट कट में की थी.. कपडे निकाले प्रिया की पसंदीदा पींक कलर की शर्ट निकाली और हल्की ब्लू कलर की जींस पहन के मैं तैयार हूआ रैक में रुम मेट की रखी हुयी कोबरा की शैंट निकाल के थोडा स्प्रे कर लिया.. ऐसा फील हो रहा था कि जैसे मैं ही सबसे स्मार्ट लडका हूँ बार –बार शीशे में देख कर फाइनली मैं बस स्टैड की तरफ चल दिया…स्टेशन पर बस खडी थी मैं बैठ गया और बस खाली थी सो कंडक्टर ने बताया कि बस थोडी लेट चलेगी. मन ही मन गुस्सा आ रहा था जैसे तैसे 20 मिनट बाद बस चल दी और ठीक 11.10 पर में प्रिया के शहर पहुच गया और और पूछताछ करते हुए आखिरकार ग्लोरी रेस्टोंरेट पहुच गया. थोडा देर ईंतजार करने के बाद देखा कि प्रिया भी रेस्टोरेंट के रिसेप्सशन पर खडी थी शायद उसने मुझे नहीं देखा था मैं जो सामने बैठा था मैंने हाथ ऊपर हिलाते हुए आवाज दी – हाय… प्रिया..उसने देखा और काफी महीनों के बाद आज मैं और प्रिया एक दूसरे के सामने बैठे थे…..समझ नहीं आ रहा था कि कहा से शुरुआत करें.थोडी देर एक दूसरे का हाल जानने के बाद हम आज फिर स्कूल के उन पुराने दिनों मे लौट चुके थे.. और थोडी देर बाद वेटर आया उसने मैन्यू सामने रखते हुए पूछा-सर क्या लेंगे. मैंने मैन्यु प्रिया की तरफ बढाते हुए कहा बताओ क्या आर्डर करना है,थोडा मशक्कत करने के बाद हमने एक चिली पोटेटो और प्रिया की पंसदीदा चिली चाउमीन आर्डर कर दी.. बातों -2 में उसने बताया कि अब आगे फैशन डिजायनिंग की पढाई करेगी.. मैंने कहा कि मुझे तो आईटी इंजीनियर बनना है किसी भी तरह…. बातों का सिलसिला काफी देर तक चलता रहा और अन्त में एक दुसरे से विदा लेने का समय आ गया….आगे भी मुलाकातों का ये सिलसिला यु ही 2 साल तक चलते रहा. कभी प्रिया मेरे शहर आती तो कभी मैं वहां…. ग्रेजुएशन फाइनल यर का रिजल्ट आने से पहले मेरा एक फ्रेंन्ड जो दिल्ली में रहता था उसने एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रवेश के लिए एक फार्म भेजा .जिसे मैंने भर के भेजा और अगले महीने ही एग्जाम के लिए दिल्ली जाना पडा.. कुछ ही दिनों में रिजल्ट आ गया..पता चला कि मेरा सलेक्शन हो गया..आज में बहुत खुश था और सबसे पहले मैंने यह खुशखुबरी प्रिया को बतायी तो वो खुश होने के बजाय थोडा उदास हो गयी क्योंकि मैं दिल्ली जाने वाला था. घर में पापा को बताया तो उन्होंने कहा कि बेटा सब तो ठीक है लेकिन दिल्ली में कैसे रहना इस तरह के कई सवाल ..लेकिन फाइनली मैंने पिताजी को मना लिया… कुछ समय के बाद मैंने दिल्ली की तरफ रुख किया और 3 मित्रों ने मिलकर एक रुम ले लिया.. फोन पर प्रिया से लगभग हर दूसरे दिन बात होती थी.. लेकिन कुछ समय बाद जिस गीता के वहां फोन करता था उसकी शादी हो गयी..और अब हमारी बातें लगभग ना के बराबर हो गयी थी. और उसके पत्रों को सिलसिला कम हो गया या य़ु कहें कि बंद हो गया.. क्योंकि मेर कुछ लैटर जो मैंने भेजे थे वो उसके घर वालों के हाथ लग गये थे.जिसकी वजह से प्रिया के घर में काफी हंगामा हो गया था.. पिछले 6 महीने से उसका ना कोई पत्र आया ना फोन … ऐसा नहीं कि मैंने उससे बात करने की कोशिश नहीं की लेकिन कभी ना बात हो पाती ना जबाब आता..समय कब निकल गया पता नहीं चला और इंजीनियरिंग की 2 साल की पढ़ाई पूरी हो गई. फाइनल के एक्जाम होते होते एक बड़ी कंपनी में इनर्टशीप मिल गयी औऱ कंपनी वालों को काम पसंद आ गया और उसी नामी कंपनी में जाब भी मिल गयी..
कुछ समय बाद मैं गांव आया और काम से अपने काम कालेज के शहर जाना पडा बस से जैसे ही उतरा था अचानक मेरी नजर स्टेशन पर खडी एक महिला पर पडी जो लम्बे घूंघट थी और एक हाथ पर गोद में रोते हुए बच्चे को चुप कराने की कोशिश कर रही थी..और साथ में एक नौजवान लडकी भी थी ऐसा लग रहा था कि जैसे में ईस औरत को जानता हूँ लेकिन फिर मैं अपने गंतव्य की ओर जा रहा था कि अचानक हा पीछे से आवाज आयी –“ हैलो कमल !!!!” मैने पीछे मुडकर देखा तो वो लम्बी घुंघट वाली औरत आश्चर्यजनक रुप से मुझे देख रही थी और मैं भी हतप्रभ उसे देख रहा था…मैं मुडने वाला ही था देखा तो उसने घुंघट उपर किया सामने देखा तो आश्चर्यचकित रह गया “अरे !!! प्रिया तुम ?… कैसे हो यह बेबी किसका है ?”
“मैं ठीक हुँ आप कैसे हैं? कांतिहीन हंसी उसके चेहरे पर थी. ये बच्चा मेरा है और ये मेरी ननद है ”
“क्या आपकी शादी नैनीताल में हुयी है? ” मैनें कहा
“हाँ. और बच्चे की ओर ईशारा करते हुए बोली कि इसके पापा नोएड़ा में जाँब करते हैं. और मैं आज वहीं से आ रही हूं”
और बताओ कमल क्या चल रहा है और पढाई पुरी हो गयी.. और आखिर इंजीनियर बन ही गये.. एक सांस में उसके ईतने सारे सवाल उसकी बेबसी औऱ हालात दोनों बया कर रहे थे.. वह एक दिखलावटी हँसी का प्रयास कर रही थी, लेकिन वो भी उससे हंसी नहीं जा रही थी..
अचानक पीछे से आवाज आयी- भाभी बस आ गयी. जल्दी करो….. यह कैसा इत्तफाक था जब लास्ट टाईम वो मुझसे मिली थी तब भी बस ही जाने वाली थी और आज भी.. शायद यही समय की महानता है..जाते –जाते उसकी भीगी पलकें मेरी आँखों को मुड –मुड कर पीछे को देख रही थी . मेरी आखों में से कुछ आंसू निकल आये..पता नहीं ये खुशी के थे या गम के ..बाँय कह के वो चले गयी और मैं निश्चेतक उसे देखता रहा. न ही उससे उसका पता पुछ सका ना ही अपने बारे में बता सका कि प्रिया मैंने तुम्हारे लिए पुरी (कविता कोष) किताब लिख दी……लेकिन एक सवाल जो मेरे मन में कौंध रहा था वो था कि एक खुले विचारों बिंदास लडकी जो आज लंबें घुघट में थी. उसने आखिर किन परिस्थितियों के आगे समर्पण कर दिया.?.और आखिर एक महकता आंचल कैसे उदास हो गया ???

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